सामंजस्य
तुम्हारा मुस्कुराना इस तरह
दिल में हलचल पैदा करता है
मानो
हरी-हरी कोंपलें निकलने
के लिए आतुर हों
और मैं उस पौध को
सींच रहा हूँ अनवरत
ताकि
कोंपलें निकलती रहें
लगातार, लगातार।
लेबल: प्रेम
तुम्हारा मुस्कुराना इस तरह
लेबल: प्रेम
यह कविता मेरे मित्र विवेक गुप्ता के लिए उस समय हुई थी जब वे देवास से स्थानांतरित होकर इंदौर जा रहे थे। वे जब देवास आये थे तब हम लोगों ने मिलकर साहित्य के लिए बहुत काम किया था। उनके जाने से एक खालीपन आ गया था। वे आजकल इंदौर में है।
लेबल: क्रांति, जिंदाबाद, प्रगतिशीलता
मुझे दु:ख हुआ बौराते ही झर गए आम
बहुत चमकदार है यहाँ सब कुछ
क्या हो गया है मेरे इस गाँव को
कितना अच्छा लगता है जब किसी किसान को हल चलाते देखते है
लेबल: hal