कविता
यह कविता मेरे मित्र विवेक गुप्ता के लिए उस समय हुई थी जब वे देवास से स्थानांतरित होकर इंदौर जा रहे थे। वे जब देवास आये थे तब हम लोगों ने मिलकर साहित्य के लिए बहुत काम किया था। उनके जाने से एक खालीपन आ गया था। वे आजकल इंदौर में है।
विचार
वह गया तब सोचा गया
अद्भुत विचार था
वह एक सोता जो फूटा था
हमारे भीतर
हमारे पास कुछ नहीं था अपना
सिवा खालीपन के
जिसे तरलता से भरा था उसने
वह छोड़ गया है यहाँ पैरों के निशान
जिन्हें कई शताब्दियों की गर्द
मिटाने की कोशिश करेगी
बुला रहे हैं वे निशान उन लोगों को
है नहीं जिनके पास
ठहरा हुआ सच
वह जहाँ से उठा था
वहां ठहरा नहीं है कुछ
चिंगारी दबी है वहां
वह फिर से लौटेगा
आग के साथ
हमारे भीतर बाकी है हवा अभी
उसे देने के लिए धौंकनी।
लेबल: क्रांति, जिंदाबाद, प्रगतिशीलता
5 टिप्पणियाँ:
वह छोड़ गया है यहाँ पैरों के निशान
जिन्हें कई शताब्दियों की गर्द
मिटाने की कोशिश करेगी
VERY TOUCHING AND ADMIRABLE WORDS, THESE WORDS ARE REAL TRUTH OF LIFE..."
regards
अत्यन्त सुंदर .
क्या बढिया चित्रण है
sundar abhivaykti...
आपका रचना संसार अलौकिक है। शब्द रचना उत्तम, बधाई सुन्दर रचना के लिए।
वो विचार कितना सुंदर होगा जिस पर यह अति सुंदर कविता लिखी गई है
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