शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

मिठास

मुझे दु:ख हुआ बौराते ही झर गए आम
ख़ुशी होती यदि आम बनकर

वे चढ़ जाते सबकी जुबान पर
तब मुझे अच्छा भी लगता
माँ आमों का रस निकालकर गुठलियाँ बो देती बाड़े में

माँ कराती इंतजार
पहली बारिश के बाद उनके उगने का
वृक्ष का सपना इन गुठलियों के भरोसे

गुठलियाँ उगते ही
मैं चुपके से उखाड़ कर
बना लेता बाजा

बाजा अपनी मिठास से भर देता माहौल
भर जाती मिठास
प्रथ्वी पर मौजूद तमाम अनुओ में

पोरों से होती हुई कोशिकाओ तक में

यह एक स्मृति जो समय के साथ
सपने में बदल गई .

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2 टिप्पणियाँ:

यहां 14 नवंबर 2008 को 10:48 am बजे, Blogger Jimmy ने कहा…

nice post work


Shyari Is Here Visit Plz Ji

http://www.discobhangra.com/shayari/romantic-shayri/

 
यहां 15 नवंबर 2008 को 9:27 am बजे, Blogger Krishna Patel ने कहा…

papa aapaki yah kavita mujhe bahut achchhi lagati hai.

 

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