बाज़ार
बहुत चमकदार है यहाँ सब कुछ
बिजली की गति से भर गया अंग-अंग
जीवन के तमाम सुख आते हैं चलकर बाज़ार से
एसी चकाचौंध कि
प्रकाश के भीतर जो अन्धकार का एक बिंदु है
समा रहा है उसी में सब कुछ
चीटों के पीछे असंख्य चीटें
चले जा रहे हैं अंधाधुंध
सड़क पर फिसलते हुए लोग
पत्थर के छोटे-छोटे टुकडों से लहूलुहान
होते हुए भी हैं बेखबर
एक छोटा सा सुख इस कदर करता है परेशान
कि पास से गुजर गया हो
कोई चीखता हुआ
कानों पर पड़े हैं सूचनाओं के पर्दे
फेहरिस्त लिए हुए हाथों में
घूम रहा है बाज़ार
दे रहा है हर घर दस्तक .
3 टिप्पणियाँ:
बहादुर भाई मजा आ गया लगे रहो। बधाई।
bazar kavita ko vivek bhai ne achchha bataya mujhe taqat mili unhe dhanywad.
pradeep bhai ka sahayog mujhe mila. samay-samay par unhone mujhe sujhav diye. ve mera blog dekhane bhi aaye bahut achchha laga. unhe dhanywad.
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