रविवार, 4 अक्तूबर 2009

नदी


मेरे भीतर एक नदी बहती हुई
उसके शीतल जल से

हहराता हुआ एक पेड़ घना
हवा के झोंकों से हिलता

वहीं किनारे पर
मिट्टी गाँव की
बस चुकी है फेफडों में मेरे


एक कुम्हार बनाता है घड़ा
नदी से भरता घड़ा
बिल्कुल ठंडा और सुगंध से भरा पानी
जिसे पीते ही गलने लगती है प्यास
उदास चहरे
पपद्दाते होठों पर
सुकून की छाया तैरने लगती है

नदी मेरे भीतर पैदा करती है एक संसार ।

लेबल: , ,

शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

मिठास

मुझे दु:ख हुआ बौराते ही झर गए आम
ख़ुशी होती यदि आम बनकर

वे चढ़ जाते सबकी जुबान पर
तब मुझे अच्छा भी लगता
माँ आमों का रस निकालकर गुठलियाँ बो देती बाड़े में

माँ कराती इंतजार
पहली बारिश के बाद उनके उगने का
वृक्ष का सपना इन गुठलियों के भरोसे

गुठलियाँ उगते ही
मैं चुपके से उखाड़ कर
बना लेता बाजा

बाजा अपनी मिठास से भर देता माहौल
भर जाती मिठास
प्रथ्वी पर मौजूद तमाम अनुओ में

पोरों से होती हुई कोशिकाओ तक में

यह एक स्मृति जो समय के साथ
सपने में बदल गई .

लेबल: , , ,