नदी
उसके शीतल जल से
हहराता हुआ एक पेड़ घना
हवा के झोंकों से हिलता
वहीं किनारे पर
मिट्टी गाँव की
बस चुकी है फेफडों में मेरे
एक कुम्हार बनाता है घड़ा
नदी से भरता घड़ा
बिल्कुल ठंडा और सुगंध से भरा पानी
जिसे पीते ही गलने लगती है प्यास
उदास चहरे
पपद्दाते होठों पर
सुकून की छाया तैरने लगती है
नदी मेरे भीतर पैदा करती है एक संसार ।