मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

सत्यनारायण पटेल की कहानियो पर

सबसे पहले सत्यनारायण पटेल की कहानी नकारो की बात करें तो यह कहानी अपने रचाव की वजह से दिलचस्प है .कहानी में वे जिस सत्य को सामने लाते हैं वह यह की स्त्रियों का जो वर्ग हे उसमे किस तरह से वे एक दूसरे के प्रति क्रूर हो जाती है .उनका असली सघर्ष क्या है उससे वे भटक जाती है . जिस तरह से वे एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगी होती है यह हमारे समाज का कटु सत्य है . भाषा का प्रवाह हमें बाँध लेता है .लेकिन फिर भी संवाद में कुछ खटकता है . या कहानीकार कहीं-कहीं अपनी तरह से कहानी को turn करता है जो कहानी को कमजोर करता है . जहाँ तक स्त्रियों की बात है ऐसा लगता है की अब उनके पास सिर्फ़ गालियाँ देने और तमाशा देखने के अलावा कुछ बचता नही है . सत्यनारायण अपनी दूसरी कहानियो में जो संघर्ष गाथा स्त्रियों के माध्यम से कहते हैं ठीक इससे उलट वे इसे कमजोर भी करते हैं .गाँव में प्रचलित एक घटना को वे अपनी कहानी बनाते है .ठीक है बहुत अच्छी बात है , लेकिन इसमे यह सावधानी बरतनी चाहिए की हमारे कहे को कोई भी हमारे विरूद्ध इस्तेमाल न कर ले जाए . यह हमारी कमजोरी भी हो सकती है . सत्यनारायण के संग्रह पर शशिभूषण ने अच्छे से लिखा है . जो prdeepindore.blogspot.com पर post किया गया है। रंगरूट एसी प्रेम कहानी है जिसे बहुत खुबसूरत ढंग से लिखा गया है जिसमे कहानीकार अपने कर्तव्य जो आजीविका का हो या माँ के प्रति हो को बहुत समझ के साथ चुनता है .यह भी एक तरह का बड़ा संघर्ष है . गाँव और कांकड़ के बीच कहानी में बालू पटेल लोगों के बीच का ही व्यक्ति है । लेकिन उसकी बीमारी जो की एक अस्पर्श्य बीमारी के रूप में अन्धविश्वास है की वजह से उपेक्षित रहता है जो अपने को असुरक्षित पता है और दलितों के बीच अपने सुरक्षित करता है । पहली बात तो यह की वह यदि इस बीमारी से ग्रसित नही होता तो क्या वह दलितों के पक्ष में होता ? दूसरी बात यह की क्या दलितों में इस बीमारी को लेकर कहीं ज्यादा अन्धविश्वास नही होगा ? यह अलग बात है की सत्यनारायण कहानी को खूबी के साथ कह ले जाते हैं और हमारे गले भी उतार देते हैं । लेकिन सच्चाई ? बिरादरी मदारी की बंदरिया कहानी अपने विस्तार के कारन ढीली है लेकिन कथ्य मजबूत है .पनही कहानी निसंदेह उम्दा है . बोंदाबा कहानी एक बेहतरीन कहानी है . भेम का भेरू कहानी बुनावट और संवेदना के स्तर और एक घुम्मकड़ जाति के भीतर हमें ले जाती है .जिसमे रच बस जाते हैं . परन्तु अंत अस्वाभाविक और नाटकीय है जीवन में इस तरह से fesale और दिमाग नही बदलता है .