रविवार, 22 अगस्त 2010

सुनाऊंगा कविता

शहर के आखिरी कोने से निकालूँगा
और लौट जाऊंगा गाँव की ओर
बचाऊंगा वहां की सबसे सस्ती
और मटमैली चीजों को
मिट्टी की ख़ामोशी से चुनूंगा कुछ शब्द

बीजों के फूटे हुए अँखुओं से
अपनी आँखों के लिए
लूँगा कुछ रोशनी

पत्थरों की ठोकर खाकर
चलना सीखूंगा
और उन्हें दूंगा धन्यवाद
उनके मस्तक पर
लगाऊंगा खून का टीका

किसान जा रहे होंगे
आत्महत्या के रास्ते पर
तब उन्हें रोकूंगा
सुनाऊंगा अपनी सबसे अंतिम
और ताजा कविता
वे लामबंद हो चल पड़ेंगे
अपने जीवन की सबसे दुरूह पगडंडी पर ।

लेबल:

8 टिप्पणियाँ:

यहां 22 अगस्त 2010 को 12:41 pm बजे, Blogger राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छी रचना जी

 
यहां 22 अगस्त 2010 को 2:46 pm बजे, Blogger Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा रचना.

 
यहां 22 अगस्त 2010 को 10:48 pm बजे, Blogger रजनीश 'साहिल ने कहा…

बहुत दिनों बाद इस वापसी पर स्वागत।
स्वागत फिर से एक अच्छी के साथ वापसी के लिए।

 
यहां 22 अगस्त 2010 को 11:17 pm बजे, Blogger प्रदीप कांत ने कहा…

किसान जा रहे होंगे
आत्महत्या के रास्ते पर
तब उन्हें रोकूंगा
सुनाऊंगा अपनी सबसे अंतिम
और ताजा कविता
वे लामबंद हो चल पड़ेंगे
अपने जीवन की सबसे दुरूह पगडंडी पर ।

vaapasee par svaagatam|

 
यहां 23 अगस्त 2010 को 12:29 am बजे, Blogger नदीम अख़्तर ने कहा…

बहुत ही उम्दा। ये पीपली से थोड़ा इंस्पायर्ड लगहती है। खैर, बहुत अच्छा लिखा आपने।

 
यहां 23 अगस्त 2010 को 8:51 am बजे, Blogger Bahadur Patel ने कहा…

nadeem bhai pipli maine dekhi nahin hai. aapane kaha to dekhunga.
vese yah kavita pipli se pahale likhi hai aur mere sangrh me hai.
dhanywaad.

 
यहां 27 अगस्त 2010 को 7:29 am बजे, Anonymous विनोद पाराशर ने कहा…

संघर्ष के लिए-प्रेरित करने वाली अति सुंदर रचना.

 
यहां 24 जनवरी 2013 को 3:15 am बजे, Blogger vijay ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है ...

 

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ