सोमवार, 12 जनवरी 2009

शब्द

हमारे पास शब्दों की कमी

बहुत यही वजह है कि

बचा नहीं सकते कुछ भी एसा

कि जैसे चिड़िया की चहचहाहट

सब कुछ होते हुए भी शब्दों का न होना

कुछ नहीं होने जैसा है

दीवार है हमारे पास

जिसे खड़ा करते हम अपने चारों और

जीवन के भीतर एसा कोई उजास नहीं

जिसके बल पर खड़ी की जा सकती हो कोई इमारत

न कोई एसा ठिकाना कि आसपास महसूस हो जीवन

एसी कोई आवाज भी नहीं

जिसकी धमक से खिंचा चला आए कोई

और सुने हमें धरती पर जीवन रहने तक

शब्दों के बिना हम कैसे सुना सकते हैं जीवनराग

कैसे बताएं कि तितली का

रंग और सुगंध से बहुत गाढा रिश्ता है

जैसे शब्द का भाषा और संस्कृति से

बिना शब्दों के मनुष्यता से तो बाहर होते ही हैं

भाषा की दुनिया में भी नहीं हो सकते दाखिल ।

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