शब्द
हमारे पास शब्दों की कमी
बहुत यही वजह है कि
बचा नहीं सकते कुछ भी एसा
कि जैसे चिड़िया की चहचहाहट
सब कुछ होते हुए भी शब्दों का न होना
कुछ नहीं होने जैसा है
दीवार है हमारे पास
जिसे खड़ा करते हम अपने चारों और
जीवन के भीतर एसा कोई उजास नहीं
जिसके बल पर खड़ी की जा सकती हो कोई इमारत
न कोई एसा ठिकाना कि आसपास महसूस हो जीवन
एसी कोई आवाज भी नहीं
जिसकी धमक से खिंचा चला आए कोई
और सुने हमें धरती पर जीवन रहने तक
शब्दों के बिना हम कैसे सुना सकते हैं जीवनराग
कैसे बताएं कि तितली का
रंग और सुगंध से बहुत गाढा रिश्ता है
जैसे शब्द का भाषा और संस्कृति से
बिना शब्दों के मनुष्यता से तो बाहर होते ही हैं
भाषा की दुनिया में भी नहीं हो सकते दाखिल ।
लेबल: कविता