सुनाऊंगा कविता
शहर के आखिरी कोने से निकालूँगा
और लौट जाऊंगा गाँव की ओर
बचाऊंगा वहां की सबसे सस्ती
और मटमैली चीजों को
मिट्टी की ख़ामोशी से चुनूंगा कुछ शब्द
बीजों के फूटे हुए अँखुओं से
अपनी आँखों के लिए
लूँगा कुछ रोशनी
पत्थरों की ठोकर खाकर
चलना सीखूंगा
और उन्हें दूंगा धन्यवाद
उनके मस्तक पर
लगाऊंगा खून का टीका
किसान जा रहे होंगे
आत्महत्या के रास्ते पर
तब उन्हें रोकूंगा
सुनाऊंगा अपनी सबसे अंतिम
और ताजा कविता
वे लामबंद हो चल पड़ेंगे
अपने जीवन की सबसे दुरूह पगडंडी पर ।
लेबल: संघर्ष
8 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी रचना जी
बहुत उम्दा रचना.
बहुत दिनों बाद इस वापसी पर स्वागत।
स्वागत फिर से एक अच्छी के साथ वापसी के लिए।
किसान जा रहे होंगे
आत्महत्या के रास्ते पर
तब उन्हें रोकूंगा
सुनाऊंगा अपनी सबसे अंतिम
और ताजा कविता
वे लामबंद हो चल पड़ेंगे
अपने जीवन की सबसे दुरूह पगडंडी पर ।
vaapasee par svaagatam|
बहुत ही उम्दा। ये पीपली से थोड़ा इंस्पायर्ड लगहती है। खैर, बहुत अच्छा लिखा आपने।
nadeem bhai pipli maine dekhi nahin hai. aapane kaha to dekhunga.
vese yah kavita pipli se pahale likhi hai aur mere sangrh me hai.
dhanywaad.
संघर्ष के लिए-प्रेरित करने वाली अति सुंदर रचना.
बहुत सुन्दर रचना है ...
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