मैं यहाँ से जा रहा हूँ
मैं यहाँ से जा रहा हूँ
बिना कुछ लिए
अपने पूरे वजूद के साथ जाना चाहता हूँ
लेकिन बहुत कुछ छूट जाता है यहाँ
और मैं जाते हुए भी
नहीं जा पा रहा हूँ पूरी तरह से
मेरे साथ नहीं जाएँगी वे
बहुत सी चीजें
जो जुड़ी रही मुझसे
ताउम्र आती रही मेरे काम
घिसती रही मेरे साथ-साथ
कुछ इच्छा से
कुछ अनिच्छा से
मेरा जाना स्थगित नहीं है
लौटना जरूर संदेहास्पद है
मेरा सबकुछ मुझसे रहा यहीं
पड़ा रह जाएगा
कुछ दूसरों के काम आएगा
कुछ टूट जाएगा
पड़ा रहेगा कबाड़ में
कुछ जला दिया जाएगा
और धुएं में फैल जाएगा
साँस लेकर छोड़ी गई हवा
पेड़ों में जीवित रहेगी
इस तरह बचा रहेगा मेरा होना
यहाँ इस पृथ्वी पर ।
8 टिप्पणियाँ:
बहादुर भाई, टाईटल पढ कर तो थोडा बिचलित हुया कि भाई कही ब्लांग जगत से जाने की बात तो नही कह रहे,
शुकर एक सुंदर कविता निकली...
साँस लेकर छोड़ी गई हवा
पेड़ों में जीवित रहेगी
इस तरह बचा रहेगा मेरा होना
यहाँ इस पृथ्वी पर ।
बहुत ही अच्छी लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद
अच्छी भावाव्यक्ति।इस कविता से मुझे अशोक वाजपेयी की एक कविता याद आ गयी जिसमें वे कहते हैं कि मैं कहीं भी चला जाऊंगा पर थोड़ा सा यहीं बचा रह जाऊंगा।
मित्र, अगर मौका मिले तो इस लिंक को कापी-पेस्ट कर खोल कर पढे़ और अपनी राय दें-
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=1514641830032186256&postID=393523654395073610
साँस लेकर छोड़ी गई हवा
पेड़ों में जीवित रहेगी
इस तरह बचा रहेगा मेरा होना
यहाँ इस पृथ्वी पर ।
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Achchhi kavita.
Par aisa laga ki kuchh adhura hai, laga ki ye pahla hi draft aapne post kiya hai.
Ho sakta hai ye mera khayal ho, par jitna aapko jana hai uske mutabik is kavita ke aur behtar hone ki ummeed karta hoon.
Manav jeevan nashwar hai lekin usse judi chijen,uske vichar,srijan prithvi par bache rahte hain,usse jude rahte hain .Ek achchi rachna ke liye badhai.
bhai
antim panktiyon ki vyanjana adbhut hai.
bana rahne ki itni utkat abhilasha!
अरे भाई कहां चले गये?
ऐसे जाने के लिये किसने कहा था?
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