पिता की मृत्यु पर बेटी का रुदन
( जब भी कोई मरता है, सबसे पहले दिए गए दु:ख फैलते हैं आसपास )
आप पेड़ थे और छाँव नहीं थी मेरे जीवन में
पत्ते की तरह गिरी आपकी देह से पीलापन लिए
देखो झांककर मेरी आत्मा का रंग हो गया है गहरा नीला
कभी पलटकर देखा नहीं आपने
नहीं किया याद
आप मुझसे लड़ते रहे समाज से लड़ने के बजाय
मैं धरती के किनारे पर खड़ी क्या कहती आपसे
धकेल दी गई मैं, ऐसी जगह गिरी
जहाँ माँ की कोख जितनी जगह भी नहीं मिली
आप थे इस दुनिया में
तब भी मेरे लिए नहीं थी धरती
और माँ से धरती होने का हक छीन लिया गया है कबसे
छटपटा रही थी हवा में
देह की खोह में सन्नाटा रौंद रहा था मुझे
और अपनी मिटटी किसे कहूं , किसे देश
कोई नहीं आया था मुझे थामने
जीवन इतना जटिल
कितने छिलके निकालेंगे दु:खों के
उसके बाद सुख का क्या भरोसा
कौन से छिलके की परत कब आंसुओं में डुबो दे
हमारी सिसकियों से हमारे ही कान के परदे फट जाएँ
ह्रदय का पारा कब नाभी में उतर आये
मोह दुश्मन है सबका
मौत आपकी नहीं मेरी हुई है
हुई है तमाम स्त्रियों की
यह आपकी बेटी विलाप कर रही है निर्जीव देह पर
चीत्कार पहुँच रही है ब्रह्मांड में
जहाँ पहले से मौजूद है कई बेटियों का हाहाकार
और कोई सुन नहीं पा रहा है .
लेबल: कविता
36 टिप्पणियाँ:
गहरी वेदना लिए है आप की कविता
नारी की विवश्ता प्रगट करती सजीव रचना
bahadur ji , behad samvedana liye hai aapki kavita , bahut achchhi tarah baat ko kaha hai .
एक शिकायत कर रही है आप की कविता अपने पिता से.... बहुत गहरे भाव लिये....
धन्यवाद
आपके ब्लॉग पर बड़ी वेदना से विचार व्यक्त किये गए हैं, पढ़कर गहरे भाव का अनुभव हुआ. कभी मेरे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com)पर भी झाँकें !!
यह आपकी बेटी विलाप कर रही है निर्जीव देह पर
चीत्कार पहुँच रही है ब्रह्मांड में
जहाँ पहले से मौजूद है कई बेटियों का हाहाकार
और कोई सुन नहीं पा रहा है .
अथाह दर्द मे डुबे लफ्ज और गहरी वेदना प्रकट करती ये पंक्तियाँ बहुत ही भावुक कर गयी..."
Regards
कौन से छिलके की परत कब आंसुओं में डुबो दे
हमारी सिसकियों से हमारे ही कान के परदे फट जाएँ
ह्रदय का पारा कब नाभी में उतर आये
phir aapane bahut behtarin kavita prastut ki hai. badhai.
rajesh karpenter
Wonderful....dard dil ko chhu gaya...
samvednaa kee gahraaiyon ko adbhut abhivyakti dee hai aapne is kavitaa se.
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं
शुभ नव वर्ष २००९ आपको सपरिवार मंगलकामनाएं
yaar यह कविता कुछ जमी नही। लगा कोई सिरा छूट रहा है।
बुरा तो ख़ैर क्या मानोगे ।
digmbar ji, renu ji, raj ji, yadav ji, seema ji, rajesh ji, ilesh ji, anupam ji, dev ji, sure ji
aap sabhi ka hahut-bahut dhanywaad.
yaar ashok jam nahin rahi hai. to koi baat nahin aur prayas karenge.
isi tarah se aate rahen.
हाँ गुरू थोडा सा काम ऑर कर लो इस पर । विराट सम्भावनाये हैं ।
धकेल दी गई मैं, ऐसी गिरी
जहाँ माँ की कोख जितनी जगह भी नहीं मिली
ये तुम्हारी सबसे अच्छी पंक्तियां हैं, छू गईं।
नए साल की शुभकामनाएं।
ravindra bhai aap mere blog par bahut intzar ke baad pahali bar aaye mujhe bahut achchha laga.
aapaki tippani se mujhe taqat mili.
bahut-bahut dhanywaad.
Purushwadi mansikta ko tatastha ke sath ujagar karne ka prayas karti ek sanvedna se bhari rachna.
Agar aap nirarthak vistar se bachte to rachna adhik prabhavi hoti.
Nav varsh ki shubkamnaon ke sath .
sandhyaji aapaka bahut-bahut dhanywaad.
अच्छी कविता
bahut cachi kavita ke liye badhai.
navneet sharma
pradeep ji, navneet ji aapaka bahut-bahut dhanywaad.
भाई अशोक कुमार पाण्डेय जी कविता तो अच्छी करते हैं पर उनकी इस समीक्षा पर मुझे संशय है। उन्होंने लिखा है कि कविता जमी नहीं,कोई सिरा छूट गया। पर बताया नहीं कि कौन सा सिरा छूट गया। उनको कहना यह चाहिये था कि कविता में दु:ख के कातर संवेग की सफल अभिव्यक्ति हुई है। हाँ, कविता में गद्य की तरह शब्द-समायोजन की छूट नहीं होती। पर यहाँ गति,लय और बात कहने के कविताई ढंग बहुत निराले हैं। भाषा की लोच कविता को प्राणवान बना रहे है और कविता को बोझिल होने से बचा भी रहे हैं।मेरी बधाई लें बहादुर पटेल जी और भावना के आवेग को कविता में लाने के समय अपने लक्ष्य के प्रति नितांत सचेत रहें। आपमें एक अच्छे कवि होने की संभावना मौजूद है।- सुशील कुमार। (sk.dumka@gmail.com)
http://www.sushilkumar.net
http://diary.sushilkumar.net
सुशील जी
मै कविता पर टिप्पणी दे रहा था फ़तवा नही।
लगा कुछ अधूरा रह गया है तो कह दिया क्या रह गया/रहा कि नही यह कवि तय करेगा।
मै समीक्षा नही पाठकीय प्रतिक्रिया दे रहा था। सहमत/असहमत होना आपका अधिकार है।
मुझे बहादुर गुरु के अच्छे कवि होने पर कोई सन्देह नही है।
चने की झाड पर मै भी चढा सकता था मगर
दोस्त होने की मज़बूरिया होती है!!!!!
Atyadhik samvedansheel....
NAV VARSH KI BADHAI
papa bahut achchhi kavita he. isi tarah likhte rahe.
शब्द जैसे बहती हुई नदी बन गये हैं
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
shushil kumar ji aapane bahut honsala badhaya. mujhe aapaki samiksha se bal mila. aapako bahut-bahut dhanywaad.
ashok bhai aapane tvarit tippani di he koi samiksha nahin ki he yah me janata hoon. doston ki baton ka koi bura nahi manata. shushil ji ne jo kaha vah bhi thik hain.unaki baaton ko hame dhyan se sunana aur padhana chahiye. kher koi baat nahin.
renoo ji, poonam ji, vinay ji aapane honsala afajai ki isake liye dhanywaad.
meri bitiya sonali ne mujhe jo pyar diya vah mere liye anamol hai.
isi tarah sab yahan aate rahen.
अच्छी भावाभिव्यक्ति।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
yah kavita bahut gahree samvedna ke saath likhee gai hai.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 मई 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
आज मैंने बीसियों कविताएं पढ़ी होगी कोई लेकिन ये आपकी रचना सबसे हटकर पढ़ी है।
किसी बदलाव के लिखना हमारा फर्ज बनता है..बेटियों को सुना जाना चाहिए,उनकी इच्छाओं को पोषित करना चाहिए,
एक पिता को समझना चाहिए कि बेटी भी अपना ही अंश है उसको उसकी मर्जी के बगैर किसी भी राह पर नहीं धकेलना चाहिए।
गहरी पीड़ा बयां हो गयी है आपसे।
प्रेरणा दायक कविता
सादर
उत्कृष्ट रचना बहादूर जी,शुभकामनाएं,पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ वो भी ऐसी उत्तम रचना पढ़ने को नमन
नारी मन की वेदना जो उसने भुगती हो अपने आकाश समान पिता के रहते, मुखरित हो आई जब दर्द उनके जाने से बड़ा था कि मेरे कब थे आप।
अतुलनीय।
हृदयस्पपर्शी रचना...
अनिवर्चनीय और अद्भुत !!!!!!!! बेटियों का रुदन मर्मान्तक और ह्रदय विदीर्ण करने वाला है |सार्थक काव्य ! इसी रचनाये हर बार अस्तित्व में नही आती | आभार और नमन |
अनिवर्चनीय और अद्भुत !!!!!!!! बेटियों का रुदन मर्मान्तक और ह्रदय विदीर्ण करने वाला है |सार्थक काव्य ! इसी रचनाये हर बार अस्तित्व में नही आती | आभार और नमन |
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