दोस्त
दोस्त तुम्हारा जो यह दोस्ती का ढंग है
यह तुम जो मेरे साथ
मित्रता का बर्ताव करते हो
सचमुच तुम्हारे भीतर यह जो लावा है
धीरे-धीरे मुझे पिघलाता जा रहा है
इसके बाद जो धातु का रेला
तुम्हारी ओर बढ़ता है
इसके पीछे जो निशान है
वे आज तक मेरे ह्रदय पर मौजूद हैं
दोस्त कितना कठिन होता है
जीवन में बिना किसी मित्र के एक
कदम उठाना
ये दोस्ती भी अजब चीज होती है
इसके भीतर जो गीलापन है
उसमे भीगते रहते हैं हम
और वह धीरे-धीरे हमें करता रहता है ख़त्म
कभी हम दोस्ती के नाम से जाने जायें
और जबरदस्त यारी के
जबरदस्त दुश्मनी में भी
दोस्ती ही बनी रहे पहचान हमेशा
तो दोस्त यह भी दोस्ती के हक
में एक बात तो है ही।
लेबल: कविता
7 टिप्पणियाँ:
wah!dost kya baat hai.sundar.
rajesh karpenter
Sundar abhivyakti. Badhai.
अन्शु मालवीय कि इसी शीर्षक की कविता की दो पन्क्तिया है
अगर न हो दोस्त
तो नही हुआ जा सकता नास्तिक
बधाई मेरे दोस्तो…तुम्हारे बिना तो मै बस राख हो सकता हूँ ।
सुन्दर, अति सुन्दर!
ये दोस्ती भी अजब चीज होती है
इसके भीतर जो गीलापन है
उसमे भीगते रहते हैं हम
और वह धीरे-धीरे हमें करता रहता है ख़त्म
दोस्ती सचमुच अजीब होती है
पर दोस्त..........
दोस्तों के लिए खुशनसीब होती है
खूबसूरत लिखा है आपने
sabhi sathiyon, rajesh ji, sandhya ji, ashok bhai, vinay ji, nasawa ji aap sabhi ka bahut-bahut dhanywaad.aapane honsala badhaya achchha laga.
अपनी बात कहने की बेहतर कोशिश।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
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